प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भारतीय राजनीति का इतिहास 'गांधी युग' के नाम से प्रसिद्ध है। 1919 से भारत का राष्ट्रीय आन्दोलन मुख्यतः उनके नेतृत्व में चला। कांग्रेस की बागडोर उनके हाथ में आ जाने से भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप तथा कार्य प्रणाली आमूल रूप से परिवर्तित हो गई। 1918 तक कांग्रेस मध्यम शिक्षित वर्ग तक सीमित थी और वार्षिक अधिवेशन, प्रस्तावना पास करना. डेपूटेशन ले जाना आदि इसकी कार्य प्रणाली के अग थे। गाँधीजी के आने से कांग्रेस ने जन आन्दोलन का रूप धारण कर लिया। मोटे रूप में राष्ट्रीय आन्दोलन में गाँधी जी की भूमिका को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- (i) आन्दोलन के स्तर पर गांधी का योगदान (ii) चिन्तनात्मक स्तर पर गांधी का योगदान और (iii) रचनात्मक स्तर पर गाँधी का योगदान। यथा-
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में गाँधीजी की भूमिका
(Role of Gandhi in the Indian National Movement)
भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में गाँधी की भूमिका का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-
1. 1919 से पूर्व गाँधीजी के कार्य - महात्मा गाँधी 1913 में दक्षिण अफ्रीका से लौटे। वहाँ उन्होंने भारतीयों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया था सत्याग्रह का जन्म दक्षिण अफ्रीका में ही हुआ था। भारत लौटकर 1917 में चम्पारन और खेड़ा के किसानों के हितों की रक्षा के लिए सत्याग्रहियों का नेतृत्व किया और सफलता पाई। 1918 में अहमदाबाद में मिल-मजदूरों की ओर से आन्दोलन किया और मिल-मालिकों से उनकी मांगे मनवाई। लेकिन गाँधी को अभी तक ब्रिटिश सरकार पर विश्वास था, जो 1918 के बाद की घटनाओं ने समाप्त कर दिया।
2. असहयोग आन्दोलन में गाँधी की भूमिका - 1919 में भारत सरकार ने रौलेट एक्ट पास किया, जिसका उद्देश्य नागरिक स्वतंत्रता का दमन करना था। गांधीजी के नेतृत्व में इस एक्ट का देशव्यापी विरोध हुआ। पंजाब में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में सैकड़ों निर्दोष लोगों को गोली से भून दिया गया जिसकी तीव्र प्रतिक्रिया सारे देश में हुई। स्थान-स्थान पर सभाएँ और हड़ताले हुई और जुलूस निकाले गए।
इसी समय मुसलमानों में खिलाफत का अन्त किये जाने के कारण बहुत रोष उत्पन्न हो गया था। गाँधीजी ने मुसलमानों की मांगों का समर्थन किया। 1920 में गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया जिसमे मुसलमानों ने भी भारी संख्या में भाग लिया। लाखो लोगों को जेलों में ठूंस दिया गया। सरकारी स्कूली और अदालतों का बहिष्कार किया और सैकड़ों व्यक्तियों ने अपनी उपाधियाँ वापिस कर दी। विदेशी माल का बहिष्कार किया गया और स्थान-स्थान पर विदेशी कपड़े जलाए गए।
महात्मा गांधी ने सत्यापहियों को अहिंसक रहने पर बल दिया और 1922 में गोरखपुर जिले में गौरी-चौरा नामक स्थान पर एक उम्र भीड़ ने पुलिस थाने में आग लगा दी जिससे कई पुलिस वाले मारे गए। गांधीजी को इससे गहरा आघात लगा और उन्होने असहयोग आन्दोलन स्थगित कर दिया।
3. 1922 से 1930 तक के गांधीजी के कार्य - सरकार ने गांधीजी पर मुकदमा चलाया और 6 वर्ष की सजा देकर जेल भेज दिया। 1924 में वे अस्वस्थता के कारण रिहा कर दिए गए। इस समय भारत में कई भीषण हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए थे जिससे दुःखी होकर गांधीजी ने 21 दिन का उपवास किया। अब राजनीति से दूर रह कर उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता, हरिजनी की स्थिति सुधारने, खादी का प्रचार करने आदि की ओर ध्यान देना शुरू किया स्वराज्य दल के कौसिल प्रवेश पर वे तटस्थ रहे।
4. 1930 का सविनय अवज्ञा आन्दोलन और गांधीजी - 12 मार्च, 1930 के दिन महात्मा गांधी ने डाण्डी यात्रा पैदल की और 6 अप्रैल को नमक कानून तोड़ा। उसी दिन समस्त देश में आन्दोलन आरम्भ हो गया और 1920 के आन्दोलन जैसे कार्य किए गए। सरकार का दमन चक्र पूरे वेग से चला। निहत्थे अहिंसात्मक सत्याग्रहियों पर लाठी-गोली की वर्षा की गई। महात्मा गाँधी और अन्य नेता गिरफ्तार कर लिए गए। 1932 के अन्त तक लगभग 1,20,000 लोगों को जेलों में बन्द किया गया।
1931 में गांधीजी छोड़ दिए गए। महात्मा गाँधी और लार्ड इरविन के बीच एक समझौता हुआ और सत्याग्रह स्थगित कर दिया गया। गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने गाँधीजी लन्दन गए, लेकिन उन्हें निराश ही लौटना पड़ा।
भारत लौटने पर वे फिर गिरफ्तार कर लिए गए। इन्हीं दिनों ब्रिटिश सरकार ने साम्प्रदायिक निर्णय घाषित किया जिससे मुसलमानों के अतिरिक्त हरिजनों को भी पृथक् निर्वाचन का अधिकार दिया गया। इसके विरोध में गाँधीजी ने आमरण अनशन किया और हरिजनों के लिए सुरक्षित स्थान रखते हुए पृथक् निर्वाचन समाप्त करने को सरकार को विवश किया।
5. 1931 से 1939 तक गाँधीजी की भूमिका - 1931 से 1939 तक महात्मा गाँधी ने रचनात्मक कार्यों की ओर ही अधिक ध्यान दिया, उन्होंने खादी कार्यक्रम, स्वदेशी आन्दोलन, नशाबन्दी, हरिजनोद्धार, हिन्दू-मुस्लिम एकता, बेसिक शिक्षा आदि रचनात्मक कार्य शुरू किये।
6. 1939 से 1942 तक महात्मा गांधी के कार्य - 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। भारत के वायसराय लार्ड लिनलिथगों ने भारत की भी मित्र राष्ट्रों की ओर से युद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी, जिसके विरोध में सात प्रान्तों में कांग्रेसी मंत्रिमण्डला ने त्याग-पत्र दे दिये। गांधी और वायसराय कई बार मिले, लेकिन कोई समझौता नहीं हो सका। गांधीजी ने कांग्रेस की बागडोर फिर सम्भाल ली। 17 अक्टूबर, 1940 को उन्होंने व्यक्तिगत सत्याग्रह आरम्भ किया। पहले और दूसरे सत्याग्रही क्रमशः विनोबा भावे और पण्डित नेहरू थे। लगभग बीस हजार सत्याग्रहियों को जेल में बन्द कर दिया गया।
इसी बीच हिटलर द्वारा रूस पर आक्रमण और जापान के युद्ध में प्रवेश करने पर ब्रिटेन की स्थिति विषम हो गई। जापान वर्मा को जीत कर भारत की सीमा पर आ पहुॅचा स्थिति की गम्भीरता अनुभव करते हुए चर्बिल सरकार ने मार्च, 1942 में सर स्टैफोर्ड क्रिस को भारतीय नेताओं से बातचीत करने के लिए भेजा गाँधीजी ने इस बातचीत में प्रमुख भाग लिया, लेकिन कांग्रेस ने क्रिप्स प्रस्ताव अस्वीकार कर दिए क्योंकि इनमें युद्ध-काल के लिए भारतीयों को वास्तविक सत्ता से वंचित रखा जाना था और युद्ध के बाद के बारे में कोई बात स्पष्ट नहीं कही गई थी।
7. भारत छोड़ो आन्दोलन (1942) - क्रिप्स वार्ता भंग हो जाने और ब्रिटिश सरकार को भारतीयों को सत्ता सोपने की अनिच्छा से भारतीयों में रोष की लहरफल गई का कहना था कि जापान का भारत पर आक्रमण करने का संकल्ल्य अवजा के भारत में मौजूद खाने के कारण ही है, इसलिए अंग्रेजों के भारत से चले जाने भारत युद्ध की विभीविका से बच जायेगा। 8 अगस्त, 1942 को कांग्रेस महासचिव ने गांधीजी की पहल पर एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पास किया जिसमें अंग्रेजों से तुरन्त भारत छोड़ने के लिए कहा गया। महात्मा गाँधी ने अपने भाषण में 'करो या मरो' का नारा दिया।
9 अगस्त को प्रातःकाल गांधीजी और कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। देश के अनेक नेताओं व हजारों व्यक्तियों को जेल में ठूंस दिया गया। सरकार का दमन चक्र फिर पूरे वेग से चलने लगा। नेताओं की अनुपस्थिति में आन्दोलन ने उग्र रूप धारण कर लिया। स्थान-स्थान पर हिंसक घटनायें हुई और सैकड़ी व्यक्ति मारे गए। रेलों की पटरियों को उखाड़ने और सार्वजनिक भवनों को जलाने की कई घटनाएँ हुई। सरकार के कठोर दमन चक्र ने तीन-चार महीनों में आन्दोलन को कुचल दिया।
8. गाँधीजी का अनशन - महात्मा गाँधी को पूना में आगा खाँ के महल में बन्दी बनाकर रखा गया था। वहाँ उन्होंने सरकार के इस आरोप पर कि वे ही 1942 की हिंसात्मक कार्यवाहियों के लिए उत्तरदायी थे 21 दिन का अनशन किया। मई, 1944 में वे रिहा कर दिए गए। जर्मनी पर विजय पाने के बाद जून, 1945 में अन्य नेता भी छोड़ दिए गए।
नये वायसराय लार्ड बेवेल ने शिमला में एक सम्मेलन आयोजित कर भारतीय नेताओं से बातचीत की, लेकिन कोई समझौता नहीं हो सका। इसके पहले 1944 में महात्मा गाँधी ने मि. जिन्ना से बम्बई में बातचीत की थी और हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रयत्न किया था, लेकिन मि. जिन्ना की हठधर्मी के कारण सफलता नहीं मिली।
9. राष्ट्रीय आन्दोलन को जन-आन्दोलन का रूप देना - गाँधीजी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को जन-आन्दोलन का रूप दिया। गांधी जी के नेतृत्व में सभी वर्गों के लोग संगठित हो गए तथा राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने लगे। कूपलैण्ड का कथन है कि "गांधी जी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को क्रांतिकारी आन्दोलन के रूप में परिवर्तित कर दिया। उन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलन को क्रांतिकारी ही नहीं, जनप्रिय भी बनाया।"
10. साम्प्रदायिकता तथा अस्पृश्यता का विरोध - गाँधी जो साम्प्रदायिकता के घोर विरोधी थे। उन्होंने साम्प्रदायिक दंगों की कटु आलोचना की और साम्प्रदायिक दंगों के विरुद्ध आमरण अनशन किया। साम्प्रदायिकता का विरोध करने के कारण 30 जनवरी, 194 को उन्हें अपने प्राणी का बलिदान करना पड़ा गाँधी जी ने अस्पृश्यता के निवारण पर भी बल दिया। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन हरिजनोद्वार में लगा दिया।
11. अन्तिम काल - 1945 के बाद महात्मा गांधी ने अधिकांश कार्य पं. नेहरू आदि पर छोड़ दिया, लेकिन उनको सहमति और सलाह के बिना ये नेता कुछ नहीं करते थे। कैबिनेट मिशन से भी गाँधीजी की सलाहानुसार बातचीत हुई। लाई माउन्टबेटन को सत्ता हस्तान्तरण और भारत विभाजन की योजना पर अपनी इच्छा के विरुद्ध उन्होंने सहमति दे दी थी।
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया, जिसका श्रेय महात्मा गांधी के सफल नेतृत्व को है। उस समय वे पूर्वी बंगाल में गाँव-गाँव घूम कर पीड़ित हिन्दुओं को सान्त्वना दे रहे थे 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी।
Gandhi's contribution to the Indian National Movement |
End of Articles.... Thanks....
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