Friday, 12 November 2021

Home >> India >> National >> Humanity and its impacts on European society

Humanity and its impacts on European society

इतिहासकार हेज के अनुसार, "नवजागरण की प्रस्तुति मानवतावाद द्वारा हुई।" मानववाद का तात्पर्य उन्नत ज्ञान से लिया जाता है। दूसरे शब्दों में, मानववाद वह धारणां थी जिसने एक ओर तो प्राचीन साहित्य में ही सभी गुण, मानवता, माधुर्य, सौन्दर्य एवं जीवन का वास्तविक सार देखा, वहीं दूसरी ओर आध्यात्मिकता, वैराग्य एवं धर्मशास्त्रों की सार्थकता से स्पष्ट इन्कार कर दिया। इस धारणा को स्वीकार करने वाले मानववादी कहलाए। प्राचीन यूनानी सभ्यता एवं संस्कृति का पक्षपाती पैट्रार्क (Petrarch) मानववाद का पिता (Father of the Humanism) कहा जाता है। माइकेल एंजेलो, दोनातेलो, मैकियावेली, फेचिनोपोलिशियन, पेरुजिनो, लियोनार्डो द विंची, ल्यूका देला रोबिया, फ्रा फिलिपो लिप्पी, सैंड्रो बातिचेली, दान्ते एवं अलबर्टी आदि पुनर्जागरण काल के अन्य मानववादी थे। इन मानववादियों ने तत्कालीन समाज की प्रमुख समस्याओं पर कड़ा प्रहार किया। मध्ययुगीन विचारधारा में धर्म एवं धर्म की आड़ पर अन्धविश्वासों एवं रूढ़ियों का बाहुल्य था, जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष होने के कारण शिक्षा का केन्द्र-बिन्दु धर्म ग्रन्थों का अध्ययन था। ऐसी स्थिति में स्वतंत्र चिन्तन का विकास अवरुद्ध हो गया था।

मानववादियों ने मध्ययुगीन व्यवस्था के विरोध में आवाज उठाई और धार्मिक विषयो के स्थान पर विज्ञान, सौन्दर्यशास्त्र, इतिहास एवं भूगोल जैसे विषयों के अध्ययन-अध्यापन पर बल दिया, संयोग-वियोग, प्रेम-घृणा, नारी सौन्दर्य एवं दाम्पत्य जीवन जैसी सामाजिक समस्याओं जैसे विषयों को अधिक महत्व दिया न कि मोक्ष को। मानववादियों ने इहलोक को ही स्वर्ग बनाने पर जोर दिया। मानव-स्वतंत्रता एवं राष्ट्रीय निष्ठा पर बल दिया। यह उल्लेखनीय है कि 15वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ तक मानववादी आन्दोलन का प्रबल ज्वार इटली में था। इसका सबसे प्रमुख कारण यह था कि इस समय इटली में शांति एवं सुव्यवस्था थी। दूसरी ओर जब पूर्वी यूरोप एवं कुस्तुन्तुनिया पर तुको का आधिपत्य स्थापित हो गया तो वहाँ से अनेक विद्वान, विद्यार्थी एवं अध्यापक, कलाकार आदि भागकर इटली आ गए और शीघ्र ही इटली का प्रसिद्ध नगर फ्लोरेंस मानववादी आन्दोलन का गढ़ बन गया।

मानववादियों के भरसक प्रयत्नों से मध्ययुगीन व्यवस्था की दीवारें हिलने लगीं। इटली के सभ्य एवं सुसंस्कृत वर्ग ने प्राचीन साहित्य एवं कला का अध्ययन जीवन का आवश्यक अंग बना लिया। लोगों के हृदय में लौकिक एवं पारलौकिक जीवन के प्रति जो धारणाएँ मध्यकाल से चली आ रही थी उनके प्रति आस्था समाप्त हो गई। मठों की क्रियाओं को हास्यास्पद समझा जाने लगा। भौतिकवादी शिक्षा को सम्बल मिला। हेज के अनुसार, ‘विश्वविद्यालयों में ग्रीक इतिहास का परिचय दिया जाने लगा।" विश्वविद्यालयों के अतिरिक्त सांस्कृतिक संस्थाओं की स्थापना होने लगी। इतिहासकार हेज ने इसी प्रकार की एक संस्था का उल्लेख किया है जिसने मानववाद को पोषित किया। अब मानववाद इटली तक ही सीमित नहीं रहा, उसकी जड़ें यूरोप में फैलने लगी और धीरे-धीरे मानववाद ने यूरोप में पुनर्जागरण पैदा कर धर्म सुधार आन्दोलन के मार्ग को प्रशस्त कर दिया।

पुनर्जागरण के कारण यूरोप के जीवन में आमूल परिवर्तन हुआ। मध्ययुगीन विश्वासी, धारणाओं एवं प्रथाओं के विरुद्ध विद्रोह का शंख फूंककर पुनर्जागरण ने यूरोप में आधुनिक युग का आह्वान किया। इस प्रकार पुनर्जागरण विश्व इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। वस्तुत: पुनर्जागरण के फलस्वरूप ही यूरोप में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ तथा अध्यात्मवाद पर भौतिकवाद की विजय हुई। पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप अन्धविश्वास का स्थान तर्क तथा विचार स्वातंत्र्य ने ले लिया। फलतः आधुनिक विज्ञान को नीव पड़ी। पुनर्जागरण ने इसके अतिरिक्त व्यक्तिवाद (Individualism) की शिक्षा दी। 16वीं शताब्दी के पूर्व लोग अन्तर्राष्ट्रीय साम्राज्य या अन्तर्राष्ट्रीय चर्च में विश्वास करते थे। परन्तु, व्यक्तिवाद के सिद्धांत ने राष्ट्रीयता (Nationalism) के सिद्धांतों को जन्म दिया। मध्यकालीन युग में 'Papacy' अन्तर्राष्ट्रीय सत्ता थी, परन्तु जब लोगों की श्रद्धा उसमें नहीं रही तो लोग अपने अपने राष्ट्र के विकास के लिए प्रयत्न करने लगे। इस तरह पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप जिस राष्ट्रीयता को भावना का उदय हुआ उससे वस्तुतः राष्ट्रीय संस्कृति का भी जन्म हुआ। पुनर्जागरण की प्रमुख विशेषताएँ या महत्व निम्नलिखित थी-

1. स्वतंत्र चिन्तन को प्रोत्साहन : पुनर्जागरण ने स्वतंत्र चिन्तन को विचारबाग को प्रोत्साहन दिया। अब यूरोपियन लोगों ने परम्परागत विचारधाराओं को तर्क की कसौटी पर कसना शुरू कर दिया। अब उनमें तार्किक दृष्टिकोण का विकास हुआ।

2. मानववादी विचारधारा का विकास : पुनर्जागरण के फलस्वरूप मानववादी : विचारधारा का विकास हुआ। मानववादियों ने इस बात पर बल दिया कि मनुष्य को परलोक की चिन्ता छोड़कर इस जीवन को आनन्द से व्यतीत करना चाहिए। मानववादियों ने धर्म और मोक्ष के स्थान पर सम्पूर्ण समाज के उद्धार पर बल दिया। उन्होंने सत्य, तर्क और नवीन दृष्टिकोण का प्रचार किया।

3. प्राचीन रूढ़ियों और अन्धविश्वासों का विरोध : पुनर्जागरण ने प्राचीन रूढ़ियों, अन्धविश्वासी तथा धार्मिक पाखण्डी और आडम्बरों पर कुठाराघात किया। इसके फलस्वरूप मनुष्य स्वतंत्र रूप से अपने व्यक्तित्व का विकास कर सका।

4. देशी भाषाओं का विकास : पुनर्जागरण के फलस्वरूप देशी भाषाओं का विकास हुआ। पुनर्जागरण के कारण विद्वानों ने बोलचाल की भाषा में पुस्तक लिखी जिसके फलस्वरूप देशी भाषाओं का विकास हुआ।

5. वैज्ञानिक विचारधारा का विकास : पुनर्जागरण के कारण वैज्ञानिक विचारधारा 2 का विकास हुआ। अब लोगों का झुकाव तर्क, प्रयोग और विज्ञान की और होने लगा। अब उसका विश्वास परम्परागत रूढ़ियों तथा अन्धविश्वासों से हटने लगा।

                                पुनर्जागरण के प्रभाव (महत्व)

पुनर्जागरण के निम्नलिखित प्रभाव हुए - 1. भौतिकवाद की प्रधानता : पुनर्जागरण का प्रभाव यूरोप पर बड़े ही गहरे रूप में पड़ा। इसने यूरोप के निवासियों में राष्ट्रीयता की भावना प्रज्ज्वलित कर दी। इसने अध्यात्मवाद पर भौतिकवाद की विजय की घोषणा की। इसका परिणाम यह हुआ कि अध्यात्मवाद का पलड़ा भौतिकवाद के सामने झुक गया। मैकियावेली ने इस नई भावना का परिचय अपनी पुस्तक 'दि प्रिंस' में दिया है। उसका कहना था कि राष्ट्र ही समाज का पथप्रदर्शक है। राष्ट्रहित के लिए भला-बुरा कोई भी मार्ग अपनाना उचित है।

2. धार्मिक दृष्टिकोण में परिवर्तन : पुनर्जागरण के फलस्वरूप लोगों के धार्मिक दृष्टिकोण में एक बहुत बड़ा परिवर्तन आया उस नए दृष्टिकोण से ही यूरोप में धर्मसुधार आंदोलन संभव हो सका चर्च की सत्ता विश्वास और अधिकार की नीव पर अवलंबित थी, परन्तु पुनर्जागरण ने उस नीव को हिला दिया। अब बुद्धि और अनुभव पर ही विशेष जोर दिया जाने लगा। पुनर्जागरण ने यह बताया कि जो वस्तु बुद्धि से परे है, उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए।

3. ज्ञान-विज्ञान की रक्षा : पुनर्जागरण के फलस्वरूप प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की रक्षा हुई। इससे लोगों के दृष्टिकोण में आमूल परिवर्त्तन हुए। अब लोग लकीर के फकीर नहीं रह गए, वरन स्वतंत्र चितन के पथ पर बढ़े तर्क और प्रयोग के सहारे मानव ज्ञान-विज्ञान का विकास हुआ।

4. मानवतावाद का विकास : पुनर्जागरण ने लोगों को वर्ग के प्रभाव से मुक्त कर + स्वतंत्र चितन का अवसर प्रदान किया। शिक्षा के विकास के कारण लोगों का बौद्धिक धरातल ऊंचा होने लगा। लोगों ने जीवन को सुखी और उन्नत बनाने के साधनों की खोज करनी शुरू की। उनमें कला, साहित्य और दर्शन का फिर से अध्ययन करने की अभिरुचि जगी और मानवतावाद का विकास हुआ।

5. मध्यमवर्ग का प्रादुर्भाव : पुनर्जागरण के कारण नए-नए देशों की खोज हुई और वाणिज्य व्यापार की काफी उन्नति हुई। वाणिज्य व्यापार की उन्नति के फलस्वरूप समाज में एक नए वर्ग- मध्यमवर्ग का प्रादुर्भाव हुआ पहले समाज में दो ही वर्ग थे-उच्चवर्ग और निम्नवर्ग उच्चवर्ग में जमींदार, कुलीन, पादरी आदि थे और निम्नवर्ग में किसान और मजदूर कालांतर में मध्यमवर्ग का प्रभाव सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में बढ़ता गया। इस वर्ग ने सामंतवाद को समाप्त करने में महत्वपूर्ण पार्ट अदा किया।

6. देशी भाषाओं की प्रधानता : पुनर्जागरण ने साहित्य और भाषा को भी प्रभावित किया साहित्य मानव को महत्व दिया गया। लैटिन और ग्रीक भाषाओं के स्थान पर देशी भाषाओं को अपनाया गया।

7. कला की प्रगति : पुनर्जागरण से कला को अपूर्व प्रोत्साहन मिला। प्राचीन यूनानी और रोमन कला ने मध्यकालीन यूरोपीय कला को प्रभावित किया। इस क्षेत्र में भी धर्म का स्थान मानव ने ले लिया।

8. ईसाई धर्म पर प्रभाव : पुनर्जागरण का ईसाई धर्म पर विचित्र तथा विरोधी प्रभाव हुआ। पुनर्जागरण ने ईसाई धर्म को मजबूत बनाया और ईसाईयों की संस्कृति का विकास किया। सोलहवीं शताब्दी में चर्च के विरुद्ध आंदोलन प्रारम्भ हुआ तो कुछ मानवतावादियों ने चर्च का पक्ष लिया। लेकिन, दूसरी ओर पुनर्जागरण ने ईसाई धर्म के परंपरागत विश्वासों और आस्था पर प्रहार किया।

9. प्राचीनता के प्रति प्रेम : पुनर्जागरण मध्यकालीन संस्कृति के विरुद्ध की प्रतिक्रिया और प्राचीन संस्कृति के प्रति प्रेम था। इसलिए, अब मध्यकालीन संस्कृति की उपेक्षा की जाने लगी। यूनान और रोम की प्राचीन संस्कृति में कला, विज्ञान, शासन, राजनीति तथा सामाजिक प्रणालियों को ढूंढ़ा जाने लगा। मध्यकाल में लोग बच्चों का नामकरण ईसाई संतो या बाइबिल के आधार पर करते थे, अब नामकरण सीजर, वर्जिल, प्लूटार्क, होमर, डायना, जूलिया, आगस्टा आदि पर होने लगा।

10. इतिहास का वैज्ञानिक अध्ययन : दूसरे विषयों के समान पुनर्जागरण के पूर्व इतिहास पर भी धर्म का प्रभाव था। इसलिए, मध्यकाल में इतिहास स्वरूप वैज्ञानिक नहीं था। मध्यकाल में इतिहास लिखते समय तिथिक्रमानुसार घटनाओं पर जोर दिया जाता था और तर्क को नाममात्र के लिए स्थान दिया जाता था। लेकिन, पुनर्जागरण के कारण धर्म का प्रभाव कम होने और विज्ञान का विकास होने से इतिहास का स्वरूप वैज्ञानिक तथा आलोचनात्मक हो गया। अब इतिहास में सत्य को स्थान दिया जाने लगा।

11. पाठ्यक्रम में वृद्धि : पुनर्जागरण के कारण शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी वृद्धि हुई। अब अन्य विषयों के अतिरिक्त ग्रीक और लैटिन का भी अध्ययन होने लगा। इसी समय से सीजर, सिसरो, वर्जिल और होमर का अध्ययन किया जा रहा है।

12. आलोचनात्मक दृष्टिकोण का विकास : पुनर्जागरण ने अंधविश्वास को बहुत हद तक समाप्त कर दिया और तर्क की प्रधानता को प्रतिष्ठित किया। अब सभी चीजों के आलोचनात्मक अध्ययन की परम्परा चल पड़ी।

13. उपनिवेशों की स्थापना : नए-नए देशों के पता लगने से व्यापार का काफी विकास हुआ। व्यापार की उन्नति के फलस्वरूप यूरोप के विभिन्न देशों ने एशिया और अफ्रीका में स्थान स्थान पर उपनिवेश स्थापित किए। वहाँ की जनता का भीषण शोषण कर कालांतर में साम्राज्य की नींव डाली गई।

इस तरह, पुनर्जागरण ने यूरोप को एक नई दिशा दी, नई चेतना दी, नया ज्ञान-विज्ञान दिया और नई परंपराएँ दी, जिनके सहारे वह आज भी प्रगति के पथ पर अग्रसर है।

Humanity and its impacts on European society
Humanity and its impacts on European society

End of Articles.... Thanks....

No comments: