Sunday, 5 December 2021

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History of Jordan

ओस्मान साम्राज्य काल में जोर्डन (Jordan) एक उपेक्षित प्रदेश था। दमिश्क-मदीना रेल-मर्ग यहाँ से गुरजता था। इसके प्रदेशों-अमन (Amman), जेराश (Jerash) और पेट्रा (Petra) में आज भी यूनानी-रोमन अवशेष देखे जा सकते हैं। पश्चिमी पर्वतीय प्रदेश ट्रांस जोर्डन में लगभग पाँच लाख लोग रहते थे। इसका पूर्वी भाग रेगिस्तान जो इराक को सीरिया और हजाज से अलग करता है। प्रथम विश्वयुद्ध काल में ट्रांसजोर्डन फैजल को अरब सेना और तुर्की की सेना का युद्ध-स्थल था। युद्धकाल में हजाज रेल मार्ग की बड़ी क्षति हुई।

नवम्बर 1918 और जुलाई 1920 के बीच क्षणिक अरब राज्य सौरिया का एक अभिन्न अंग था लेकिन दक्षिणी सीमाएँ अनिश्चित थीं। उत्तर में अमन और केराक (Kerak) दमिश्क सरकार के अधीन थे, दक्षिण का मान (Mann) शहर और लाल सागर में अकाबा (Aqaba) बन्दरगाह हजाज के राजा हुसेन के प्रति भक्ति-भाव प्रकट करते थे। राजा हुसेन उस समय संपूर्ण अरब जगत का शासक समझता था। जुलाई, 1920 से मार्च, 1921 तक सोरिया में फैजल सरकार के पतन के बाद ट्रांसजोर्डन में कोई सरकार न थी। इस समय यह प्रदेश ब्रिटिश अधिकारियों को देख-रेख में था क्योंकि फिलीस्तान पर ब्रिटिश संरक्षण शासन था।

फरवरी, 1921 में राजा हुसेन का दूसरा लड़का अमीर अब्दुला ट्रांसजोर्डन आया। उसका इरादा फ्रांसीसी अधिकृत सीरिया पर आक्रमण कर वहाँ फैजल का शक्ति पुनर्स्थापन करना था। किन्तु उपनिवेश सचिव विन्स्टन चर्चिल ने उसे ट्रांस जोर्डन का अमीन बनने के लिए राजी कर लिया। अप्रैल, 1921 को अब्दुला अमान का अमीर बनाया गया। उसे ब्रिटिश सरकार से प्रतिमाह पाँच हजार पौंड दिया जाने लगा। 1882 में अब्दुला का जन्म हुआ था। वह शुरू से ही राजनीति में सक्रिय था। युद्ध के पूर्व वह उस्मान संसद में हजाज का प्रतिनिधि और उपाध्यक्ष था। बाद में वह अपने पिता का विदेश मंत्री बना। वह अपने विजेता भाई फैजल के सामने थोड़ा मन्द पड़ जाता था। 1919 में तुराबा (Turaba) में वह इन सऊद द्वारा पराजित किया गया। इससे उसकी प्रतिष्ठा जाती रही। 1920 में दमिश्क की सोरियाई सम्मेलन (Syrian Congress) ने उसे इसक का राजा बनाया। किन्तु, शीघ्र ही फ्रांसीसियों ने उसे हटा दिया और बाद में ब्रिटिश सरकार न उसे इराक का राजा बनाया। अब्दुला की योजनाएँ विफल रहीं और उसे ट्रांसजोर्डन का शासक बनकर संतुष्ट होना पड़ा। किन्तु, इब्न सऊद उसके प्रदेश को हड़पना चाहता था। 1927 को जड्डा सधि (Treaty of Jidda) द्वारा इब्न सऊद ने ट्रांसजोर्डन का मान और अकाबा पर अधिकार मान लिया।

ट्रॉसजोर्डन का यहूदियों के राष्ट्रीय गृह समस्या से कोई संबंध नहीं था। ब्रिटेन अतिरिक्त और किसी यूरोपीय देश वहाँ कोई सरोकार नहीं था। अत: यह महाशक्तियों की प्रतिद्वन्द्रिता और कुचक्र से अछूता रहा। ब्रिटेन का इस रेगिस्तानी भाग में मुख्य तीन हित थे। यह भूमध्यसागर और फारस की खाड़ी के बीच ब्रिटिश नियंत्रित स्थल मार्ग से संबंधित था। द्वितीय, इसका शासक एक हश्मी (Hashimi) राजकुमार था और ब्रिटेन की नीति हश्मियों से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने की थी। तृतीय, यह एक अरब प्रदेश था तथा इसके महत्वहीन होने के बावजूद भी ब्रिटेन इसे किसी दूसरे यूरोपीय राज्य के अधीन देखना नहीं चाहता था।

सरकार और सैनिक दल (Government and Military Forces)- ब्रिटिश सह-उपनिवेशों की भाँति ट्रांसजोर्ड का शासन-प्रबंध किया गया। वहाँ अमीर अब्दुला का देशी शासन था। दमिश्क के फैजल ने इसके सैनिक और असैनिक पदाधिकारियों को नियुक्ति की थी। अप्रैल, 1928 को अब्दुला की सहमति से ब्रिटिश अधिकारियों ने ट्रांसजोर्डन के लिए एक आगिक विधि (Organic Law) की घोषणा की। इसने अमीर को विधायनी और प्रशासकीय अधिकार प्रदान किए। उसकी सहायता के लिए एक कार्यपालिका और एक विधायिका परिषद थी। व्यवस्थापिका परिषद का गठन अप्रत्यक्ष मताधिकार द्वारा होता था अल्संख्यकों और बेदुइनों (Bedouins) को भी आनुपातिक प्रतिनिधित्व किया गया।

उपर्युक्त देशी ढाँचा के ऊपर फिलीस्तीन और ट्रांसजोर्डन में ब्रिटिश संरक्षण शासन था। इसके लिए अमन में एक स्थायी रेजीडेंट रखा गया। रेजीडेंट अरब प्रशासन का पर्यवेक्षण करता था। वह ब्रिटिश परामर्शदाताओं और प्रशासकों द्वारा इसको मदद करता था। ये परामर्शदाता और प्रशासक विविध सरकारी विभागों में थे। 20 फरवरी, 1928 को जेरूसलम में एक आंग्ल-ट्रांसजोडियन समझौता पर हस्ताक्षर किया गया। इसने इस क्षेत्र पर ब्रिटेन की सर्वोच्च सत्ता की संपुष्टि कर दी। ब्रिटिश रेजीडेंट को विधायनी, वैदेशिक मामलों, वित्तीय मामलों, विदेशियों और अल्पसंख्यकों को रक्षा के लिए विशेषाधिकार दिए गए। 1934 के एक संशोधन द्वारा अमोर को विदेशों में वाणिज्य दूतों का नियुक्ति अधिकार दिया गया।

शुरू से ही ट्रांसजोर्डन को ब्रिटिश आर्थिक सहायता मिलती रही। यह आर्थिक सहायता प्रतिवर्ष एक लाख पौंड तक थी। 1940 के बाद यह बढ़कर प्रतिवर्ष बोस लाख पाँड़ हो गई। आर्थिक सहायता के राजनीतिक और आर्थिक कारण थे। आर्थिक दृष्टिकोण से ट्रांसजोर्डन एक निर्धन इलाका था। कृषि और पशुपालन जीविका के मुख्य साधन थे। ट्रांसजोर्डन को फिलीस्तीन के चुंगी क्षेत्र में रखा गया था। यह तस्करियों का अड्डा था। सीरिया, सऊदी अरब और ईराक के साथ इसकी सीमाओं की कमजोर पहरेदारी के कारण तस्करी आसान और आकर्षक हो गई थी।

अमीर की अरबी सेना (Arab Legion) काफी मशहूर थी। 1921 में इसकी स्थापना हुई थी। इसमें एक हजार सैनिक थे। कालांतर में इस सेना की संख्या और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। इसका गठन कैप्टन एफ० जो० पौक (F. Peake) ने किया था जिसने युद्धकाल में मिनी ऊँट दल (Egyptian Camel Corps) का नेतृत्व किया था पीक ने अरबी सेना की मदद से ना (Bedouin)का सामना किया, महाबी इवान (Wahlhahi [khwan) के हमले को स किया और व्यवस्था कायम रखी। उसकी पूर्ण सेवा के लिए अमीर ने उसे पा की पदवों से विभूषित किया। 1939 में उसकी जगह पर मेजर जॉन बेगोर ग्लूब (Major John Bagot Glubh) आया अरबी सेना में स्वयंसेवक थे जिसमें अरब जाति का कोई भी स्वस्थ युवक शामिल हो सकता था। इसमें केवल ट्रांसजोडिनियन ही नहीं अपितु इराकी, हेजाजी, फिलिस्तीनियन, सोरियन आदि भी थे। इस तरह यह बृहत् अरब सेना (Pan-Arab Army) का केन्द्रबिन्दु और ब्रिटिश नीति का महत्वपूर्ण वाहक थी।

अरब सेना के अतिरिक्त वहाँ एक ट्रांसजोर्डन सीमा क्षेत्र (Transjordan frontier Force) भी था। इसका गठन 1928 के आंग्ल-ट्रांसजोर्डियन संधि के बाद हुआ था। सीमा रक्षा इसका मुख्य काम था। यह ब्रिटिश सरकार का दायित्व था अतः सीमा दल ब्रिटिश साम्राज्यीय प्रवन्ध था जो फिलीस्तीन के उच्चायुक्त के अधीन था।

द्वितीय विश्वयुद्ध काल में अरब सेना (Arab Legion) और ट्रांसजोर्डन सीमा दल (Transjordan Frontier Force) का आधुनिकीकरण किया गया और दोनों का उपयोग ट्रांसजोर्डन की सीमा के बाहर किया गया। 1940 में अरब सेना में मरू यंत्रीकृत टुकड़ी (Desert Mechanized Regiment) का सृजन किया गया। इससे इसकी क्षमता और भी बढ़ गई। 1941 में ईराक में रशीद अली के विद्रोह दमन में मंत्रीकृत टुकड़ी ने महत्वपूर्ण भाग लिया। शीघ्र हो इसने सीरियाई अभियान में भाग लिया। अरब सेना के सुसन्जित करने के कारण ट्रांसजोर्डन को दी जाने वाली आर्थिक सहायता की राशि बढ़ गई। 1948 में अरब इजरायली युद्धकाल में अरब सेना ने महत्वपूर्ण भाग लिया।

द्वितीय विश्वयुद्ध काल में ट्रांसजोर्डन का इतिहास घटना शून्य है। आन्तरिक समस्या केवल शांति व्यवस्था कायम रखने की थी जिससे व्यापार व्यवसाय के विकास में किसी प्रकार की बाधा न पहुंचे। साथ हो खाना बदशियों के लूट-पाट से वहाँ के निवासियों को सुरक्षा प्रदान करना था। ट्रांसजोर्डन से गुजरने वाला इजाज रेल मार्ग की मरम्मत करा दी गई और उस पर रेलगाड़ी दौड़ने लगी। किन्तु हेजाज और संरक्षण शक्तियों के बीच रेलवे को कानूनी स्थिति में विवाद उत्पन्न होने के फलस्वरूप सीरियाई और हेजाजी क्षेत्रों में रेल मार्ग का पुनस्थापन नहीं हुआ। इससे ट्रांसजोर्डन को आर्थिक क्षति उठानी पड़ी।

ट्रांसजोर्डन के अल्पसंख्यकों की कोई समस्या नहीं थी। 1944 में इनकी संख्या तीन लाख चालीस हजार थी जिनमें अधिकांश अरब और सुन्नी मुस्लिम थे। युद्धकाल में ट्रांसजोर्डन के शासन का प्रधान तौफिक पाशा अबुल हुदा (Tewfik Pasha Abul Huda) था। वह ब्रिटिश संरक्षण प्रणाली के पर्यवेक्षण के अधीन था। इस काल में राजनीतिक स्थायित्व और शांति बनी रही। 1938 में आगिक विधि में संशोधन और 1941 में ब्रिटेन के साथ समझौता के बावजूद भी ब्रिटिश राजनीतिक और प्रशासनिक प्रतिमान में तनिक भी परिवर्तन नहीं आया।

द्वितीय विश्वयुद्ध से ट्रांसजोर्डन प्रदेश अछूता रहा। इसने इसे केवल अप्रत्यक्ष ढंग से प्रभावित किया केवल एक महत्वपूर्ण घटना अरब सेना ईसकी और सोरियाई अभियानों में भाग लेने को थी। अल्पकाल के लिए अमन ईसकी राजनीतिज्ञों का शरण-स्थल बन गया। वे रशीद अली के सैनिक विपल्व के समय बगदाद से भाग गए थे। एक अन्य घटना 1938 और 1941 के बीच हैफा-बगदाद (Haifa Baghdad) सड़क के निर्माण की थी। इसकी कुल लम्बाई 1880 किलोमीटर थी जिनमें 340 किलोमीटर ट्रांसजोर्डन से गुजरती थी। यह राजमार्ग ब्रिटिश साम्राज्यीय आवश्यकतानुकूल था युद्धकाल में इससे सेना और सैन्य सामग्री भेजी गई। फलतः ब्रिटेन के लिए ट्रांसजोर्डन का सामरिक महत्व बढ़ गया। 

1921 और 1945 के बीच ट्रांसजोर्डन की विदेश नीति के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह कमजोर और पूर्णत: ब्रिटेन पर आश्रित था। हजाज पर इन सऊद की विजय के समय से सऊद और अमीर अब्दुला के बीच दुश्मनी भी रही। अब्दुला ने उत्तर में बहाबी विस्तार को रोक दिया। उसने वृहत्तर सोरिया की योजना भी बनाई। लेकिन यह योजना अपूर्ण रही। ब्रिटेन को संरक्षण प्रणाली के अन्तर्गत ट्रांसजोर्डन में ईराक और मिस्र की तरह कोई विद्रोह नहीं हुआ। ब्रिटेन और अमीर अब्दुला में सद्भावनापूर्ण वातावरण बना रहा। वह राजकीय वायु सेना का अवैतनिक कमोडोर (Commodore of the Royal Air Force) बना दिया गया। 1943-44 में ब्रिटेन ने युद्ध के बाद ट्रांसजोर्डन को स्वतंत्र करने की घोषण की। फलत: जब 1946 में संयुक्त राष्ट्र में संरक्षण प्रणाली पर विचार-विमर्श शुरू हुआ तो ब्रिटिश प्रतिनिधि ने ट्रांसजोर्डन को संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में गठित ट्रस्टीशिप में नहीं रखने और इसे शीघ्र स्वतंत्र करने की घोषणा को इसके शीघ्र ही बाद 22 मार्च, 1946 को लन्दन में ब्रिटेन और ट्रांसजोर्डन ने एक संधि पर हस्ताक्षर किया जो 1930 की आंग्ल-ईराकी सौंध से मिलती-जुलती थी। इसके अनुसार ब्रिटेन ने ट्रांसजोर्डन को एक स्वतंत्र राज्य की मान्यता दे दी, राजनीतिक प्रतिनिधियों का आदान-प्रदान करना मान लिया, अरब सेना को आर्थिक सहायता देने और अमोर को वाह्याक्रमण में सुरक्षा प्रदान करने का वचन दिया। इसके बदले में ब्रिटेन को ट्रांसजोर्डन की भूमि पर सेना रखने, इसके यातायात को सुविधाओं का उपयोग करने और अब्दुला के सशस्त्र सैनिकों को प्रशिक्षण देने का अधिकार मिल गया। दोनों देशों ने वैदेशिक मामलों में एक-दूसरे के सामान्य हितों पर सम्पर्क स्थापित करना मान लिया।

25 अप्रैल, 1946 को अमीर अब्दुला ने राजा की पदवी धारण की. ट्रांसजोर्डन के बुद्धिजीवि उपर्युक्त संधि से खुश न थे। अतः ब्रिटेन ने सधि में संशोधन करने का प्रस्ताव मान लिया। 18 मार्च, 1948 को अमन में आंग्ल-ट्रांसजोर्डिनियन संधि पर हस्ताक्षर किया गया। यह पहली स से भिन्न थी। अब ट्रांसजोर्डन में ब्रिटेन के सैनिक विशेषाधिकारों में कमी को गई। फिर भी ट्रांसजोर्डन की दो हवाईपट्टियाँ (अमन और माफर) पर ब्रिटेन का नियंत्रण बना रहा। साथ हो ट्रांसजोर्डन की वाह्य सुरक्षा के लिए एक आंग्ल-ट्रांसजोर्डिनियन संयुक्त प्रतिरक्षा पचंद (Anglo Transjordzmian Joint Defense Board) की स्थापना की गई।

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