सिन्धु या हड़प्पा सभ्यता की खोज 1921-22 में की गयी। खोज ने भारत को मेसोपोटामिया और मिस्र जहाँ प्राचीनतम सभ्यताओं के उदय और विकास की प्रक्रिया प्रारम्भ और विकसित हुई थी जैसे प्राचीन देशों के समकक्ष लाकर इतिहास की गौरवशाली परम्परा के साथ जोड़ दिया। इन खोजों ने भारतीय सभ्यता के बारे में हमारी जानकारी को एकाएक लगभग 3000 ईसा पूर्व प्राचीन बना दिया।
खुदाई से प्राप्त अस्थि पंजरों, मूर्तियों आदि के आधार पर कर्नल स्मूअल आदि विद्वानों ने निष्कर्ष निकाला है कि सिन्धु प्रदेश में भूमध्यसागरीय, प्रोटो, आस्ट्रालयाड, मंगोलियन तथा अल्पाइन जाति के लोग निवास करते थे।
1. नगर योजना - हड़प्पाकालीन सभ्यता की सर्वाधिक प्रभावशाली विशेषता उसकी नगर योजना एवं सफाई संबंधी व्यवस्थायें हैं। सड़कें और नालियाँ एक निर्धारित योजना के. अनुसार निर्मित की गई हैं। मुख्य मार्ग उत्तर से दक्षिण की ओर जाते हैं तथा चौराहे एवं गलियाँ उन्हें समकोण पर विभाजित करती थीं। सड़कें और गलियाँ 9 से 33 फुट तक चौड़ी हैं। मोहनजोदड़ों की हर गली में एक सार्वजनिक कूप होता था और अधिकांश मकानों के अपने निजी कूप और स्नानगृह होते थे। भवन सड़कों के दोनों ओर थे। मकान दो या तीन मंजिला होते थे। छतों पर जाने के लिए सीढ़ी होती थीं। मकान पक्की ईटों के बने थे। नालियों का अच्छा प्रबन्ध था। मोहनजोदड़ों में एक विशाल स्नानागार भी मिला है, जिसके दोनों ओर 23 से.मी. ऊंची और 20 से.मी. चौड़ी सीढ़ियाँ हैं। इसके पास 8 स्नानगृह और बने हुये हैं। स्नानागार के निकट ही एक विशाल सभा भवन बना हुआ है। यहाँ पर विशेष अवसरों पर नागरिक एकत्रित होकर वाद-विवाद करते थे।
2. आर्थिक जीवन - हड़प्पाकालीन अर्थव्यवस्था सिंचित कृषि अधिशेष, पशुपालन, विभिन्न दस्तकारियों में दक्षता और समृद्ध आन्तरिक और विदेशी व्यापारिक पर आधारित थी। इनके आर्थिक जीवन का मुख्य आधार कृषि था। लोग गेहूँ, जौ, गन्ना, कपास आदि उत्पन्न करते थे। हड़प्पा में विशाल अन्नागार भी प्राप्त हुआ है। ये लोग गाय, बैल, भेड़, ऊंट, बकरी, हाथी, कुत्ते तथा सूअर आदि पशु पालते थे। लोग विभिन्न प्रकार के व्यवसाय करते थे, जैसे-कलाई, बुनाई आदि। अनेक प्रकार के खिलौने, अस्त्र-शस्त्र, गदा, फरसा मिले है। बदईगिरी, सुनारगिरी, जौहरी, हाथीदांत के काम, पत्थर का काम, चित्रकारी आदि की जाती थी। खुदाई में कुछ धातुएँ तथा खनिज पदार्थ भी प्राप्त हुए है। खुदाई में 550 मुहरें मिली है। नाप-तौल भी की जाती थी। देश-विदेशों में भी व्यापार होता था।
3. सामाजिक जीवन - समाज मातृसत्तात्मक था। समाज में स्त्रियों को उच्च स्थान प्राप्त था। स्त्रियाँ कमर के ऊपर के भाग में कमीज जैसा वस्त्र तथा कमर में लुंगी पहनती थी। पुरुष लम्बा दुशाला ओढ़ते थे। वे चावल भी खाते थे। मछली, अण्डा, दूध, घी, खजूर का भी प्रयोग करते थे। सिन्धु घाटी के लोग छोटी दाढ़ी रखते थे। स्त्रियाँ विभिन्न प्रकार का श्रृंगार करती थी। स्त्री-पुरुष दोनों ही आभूषण पहनते थे। हार, बाजूबन्द, अंगूठी, चूड़ी आदि का प्रयोग सामान्य था। नृत्य तथा गान का प्रचलन था। शिकार का भी प्रचलन था। मृतक संस्कार तीन प्रकार के थे - (i) शव को जलाकर, (ii) शव को गाढ़कर, (iii) शव को खुला छोड़कर।
4. धार्मिक जीवन - सुमेर और मिस्र की भाँति सिन्धुवासी भी मातृदेवी की पूजा करते थे। शिव की उपासना की जाती थी। शिवलिंग की पूजा की जाती थी। सिन्धु निवासी प्राकृतिक शक्तियों-अग्नि, जल, वायु, सूर्य, नाग, पीपल, बरगद आदि की उपासना करते थे। सिन्धुवासी बहुदेववादी थे। ये लोग भूत-प्रेत में भी विश्वास रखते थे। इस प्रकार विश्व की समस्त प्राचीन संस्कृतियों की भाँति हड़प्पाकालीन लोगों के जीवन में भी धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
5. कला - दस्तकारी, प्रौद्योगिकी तथा कला के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई थी। ये लोग मूर्तिकला में बहुत निपुण थे। पत्थरों को काटकर मूर्तियाँ बनायी जाती थीं। एक कांसे की मूर्ति मिली है। मुहरों पर साँड़ो, गैड़ा, भैसों आदि के चित्र प्राप्त हुए हैं, उनसे चित्रकला की उन्नति का पता चलता है। मिट्टी के बर्तन भी बनाये जाते थे। काँसे की नर्तकी की मूर्ति से नृत्यकला की निपुणता का पता चलता है। लेखन कला तथा धातुकला उन्नत दशा में थी।
6. राजनीतिक जीवन - सिन्धु सभ्यता एक अति विकसित नागरिक जीवन की परिचायक है। लिखित सामग्री के अभाव में इस समय राजनीतिक स्थिति का अधिक ज्ञान नहीं होता है। नगर के मध्य एक विशाल सभा-भवन मिला है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि सिन्धु सभ्यता में गणतंत्र शासन प्रणाली प्रचलित थी।
सिन्धु सभ्यता की भारतीय सभ्यता को देन - शताब्दियों पूर्व भारत में एक बहुत ही उच्चकोटि की सभ्यता का विकास हो चुका था। ये लोग सुव्यवस्थित एवं शांतिपूर्ण सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन व्यतीत करते थे। यह सभ्यता निश्चित ही भारतीय सभ्यता थी। सिन्धु घाटी की सभ्यता का वैदिक सभ्यता से घनिष्ठ संबंध है। दोनों सभ्यताओं में पर्याप्त विभिन्नताए थी। वैदिक काल ग्रामीण जीवन परन्तु सिन्धु सभ्यता नागरिक सभ्यता थी। वैदिक काल में लोहे का ज्ञान था जबकि सिन्धु सभ्यता के लोग अनभिज्ञ थे। वैदिक सभ्यता के अन्तर्गत राजनीतिक व्यवस्था राजतंत्रात्मक थी जबकि सिन्धु सभ्यता में गणतंत्रात्मक व्यवस्था थी। सिन्धुवासी युद्ध प्रिय नहीं थे जबकि वैदिक आर्यों का प्रमुख व्यवसाय कृषि और युद्ध करना था। सिन्धुवासियों में मातृसत्तात्मक समाज प्रचलित था परन्तु वैदिक समाज पितृ सत्तात्मक था। वैदिक समाज चार वर्णों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र में विभक्त था जबकि सिन्धुवासी इस वर्ण-व्यवस्था में आस्था नहीं रखते थे। आर्यों ने लेखनकला का ज्ञान उत्तर वैदिक काल में प्राप्त किया था। सिन्धुवासी भवन निर्माण कला में प्रवीण थे जबकि आर्य लोग प्रकृति के विभिन्न रूपों के उपासक थे। विभिन्नताओं के होते हुए भी दोनों की सभ्यताएँ कई बातों में समान थीं। अतः यह सर्वमान्य है कि सिन्धु सभ्यता ने भारतीय सभ्यता को बहुत कुछ दिया है।
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